
खाओ पकोड़े पियो चाय संग परिवार,
खुशियाँ आपके जीवन में रहे बरकरार,
लेकिन अपनी सिमटी दुनिया में कुछ भूल न जाना यार,
कहीं किसी अनदेखे अनजाने कोने में कोई पशु,
कोई इंसान कंपकंपाता , ठिठुराता है बार बार,
जिसका न कोई परिवार, न घर-बार,
तलवारों से भी तेज है इन सर्द हवाओं की धार,
जो न सिर्फ शरीर, काटती है रूह, मेरे यार…
थोड़ा उठो, रजाई फेंको, जरा ढूंढो तो सही,
कहीं कोई पुराना कम्बल, कोई स्वेटर,
जिसकी न है अब तुझे दरकार,
लेकिन कोई लाचार कर रहा है उनका इंतजार,
बहुत कुछ न सही, कुछ गर्म सुकून के लम्हे ही दे आओ,
कहीं-अनकही दुआओं से,
भगवान तुझे भी देगा खुशियों का भंडार…

