दिल्ली की सर्दी में कहीं से एक शरणार्थी महिला , “कजरी” ,अपने छोटे बच्चे के साथ आती है! कोई सहारा और ठिकाना न होने के कारण उसको कडाके की ठण्ड में भी दिन और रात सड़क पर गुजारने पड़ते हैं! कोई उसकी मदद नहीं करता , बस कभी कभी कभी तरस खाकर लोग उसके बच्चे को भीख दे देते हैं! उस पर भी उसे काफी ताड़ना और ज़िल्लत का सामना करना पड़ता है. कुछ लोग उन्हें माफिया गैंग का सदस्य बताते हैं, कुछ आतंकवादी तक कह देते हैं. कुछ लोग कजरी पे बुरी नज़र डालने से भी नहीं चूकते और उसकी तार-तार हुई लाचारी उन्हें शर्म से आँखें झुकाने के लिए मजबूर करने के बजाए, उनकी वासना को भड़काने का काम करती है! महिला चाहे गरीब हो या अमीर, मैली-कुचेली हो या सजी-धजी, ऐसे पुरुषों के लिए वो सिर्फ मांस का एक टुकड़ा है! त्तंग आकर कजरी ऐसे जानवर-लोगों को पत्थर मारती है या हारकर खुद को नोच खाने के लिए कहती है! एक दिन रात को सर्दी के कारण कजरी का बच्चा बुरी तरह से काँप रहा होता है, तो कजरी उसे अपने आँचल और बचे-खुचे कपड़ों का सहारा देती है! वो रात बच्चे को तो बचा लेती है, लेकिन कजरी को निगल जाती है! अगले दिन सुबह कजरी का अर्ध-नग्न अकडा हुआ मृत शरीर फुटपाथ पर पडा हुआ मिलता है! उसका बच्चा पास ही में रो रहा होता है! एक पागल बुढ़िया आकर उसका शरीर अखबार से ढकती है! अखबार का शीर्षक : आंतकवादी सरगना मारा गया!
अंत में बच्चा अपनी माँ की चिता पर हाथ सेकता हुआ दिखता है. :
सर्द लोगों की दुनिया में तो लाचारों को सिर्फ मौत नसीब होती है
, या सिर्फ जलती चिताओं में अग्नि करीब होती है.