Mediocre Words..Banal Poetry
Mediocre Words..Banal Poetry

Baarish

कहीं केश और श्रृंगार मेरे बिगड बिगड ना जाये

ये सोच कर शहर की छोरी बारिश से घबराती

है बारिश से घबराती..

 

नाज़ुक सी कलाई में, चूड़ी वाले हाथों में

साड़ी से मैचिंग, हाँ  जी साड़ी से मैचिंग

छाता लेके आती, इतराती सी, घबराती सी

 

हौले हौले सी मुस्काती वो, मुस्काती वो

मन के भाव छुपाती सी , थोड़ा शर्माती सी

मन ही मन खुद से बतियाती वो

 

देखो तो ज़रा , कौन है ये नचियाता सा

झल्ला सा, झुंझुनाता सा पगलाता सा

भँवरे की तरह भीं-भीं-भीं-भीनभिनाता सा 

 

उफ्फ , सहरिया छोरी के केश यूँ  बलखाते से

मध्यम  मध्यम  शीतल शीतल लहरों से लहराते से

कुछ छलकी बूँदें करीब से , आज लुटी ग़रीबी ग़रीब से…

 

देखो देखो लोगों , भालू आया भालू आया

सर पे अपने जंगली जंगली झाड़ा लाया

मुझको  ये रोकने टोकने वाला – हुंह — बड़ा  आया!

 

यूँ  घूम न मेरे आगे पीछे , लगा न न तू यूँ चक्कर से..

चाहता  क्या है ,  तेरे इरादे क्या हैं

ऐ  पगले दीवाने, घनचक्कर से….

 

सुन रे ओ अनजानी-बेगानी, तू है तो कुछ दीवानी सी

न जाने क्यों लगती है तू अपनी सी , सच रे हंस मत !

तेरी रूह की खुशबु है कबकी जानी-पहचानी  सी…

 

अरररे अरररे उड़ा  उड़ा मेरा छाता रे ,चली जो हवा सी

मुझको न देख लल्लू , उसको तू थाम रे,

तेरी नज़र यूँ हर वक्त  क्यूँ रहती है फिसली सी…..

 

छाता उड़ा जो  उड़ा , मेरा दिल भी अब गया  रे….

कहाँ फिसलती हैं मेरी निगाहें ,झूठी?

तेरी ज़ुल्फ़ों ने उन्हें क़ैद कर

चाबी तेरे लबों की हंसी को थमा दी….

 

ऐसा न बोल कठोर कन्या,

 दिल पे कुछ बिजली सी गिरी ,

सुन रहा हूँ मैं,  मेघों की गर्जन

तू सुन तो ज़रा  मेरे दिल की धड़कन.. …

क्यूँ  मैं सुनु तेरी बकबक , इस मदमस्त मौसम मे

मेरे कदम जाएँ यूँ  थिरक थिरक नचक  नचक

पगले खड़ा है तू झाड़ सा ,आशिक उजाड़ सा

कुछ कमर हिला कुछ कदम डुला …

 

तेरे इश्क़ में , अब कुछ होश नहीं,  मैं सब भूला

अब  चाहने  वालों को तू झाड़ बुला

या अपने इशारों पे नचा

मै तो अपने  दिल से गया , जान  से गया

उफ़्फ़ कैसा ये झल्ला पीछे पड़ा रे,  

अब तू झाड़ में जा या  भाड़  में जा

मुझे क्या! मैं  तो चली  अपनी राह

अरी ओ छतरी-धरिका , लंब-केशिका

यूँ  चली कहाँ दिल तोड़, मुझे तू छोड़

तेरी राह ही मेरी चाह , तू जहाँ ये भालू वहां

रुक तो ज़रा

हम थोड़ा हँसियाय – मुस्कराय दिए। तो क्या दिल लगाए दिए

देखो तो कैसे छतरी उड़ाए

 लंगूर सा दौड़ा चला  आता है

हाँ  रे, फिर भी मन को बहुत भाता है

क्या कह गयी ये – कौन इसको भाता है?

अरे मैं  ही तो  हूँ वो इकलौता लंगूर

जिसके हाथ में छाता  है..

 

हे भगवान, मन में मेरे लड्डू क्या  फूटा

ध्यान टूटा और हाथ से  मेरे छाता छूटा

कन्या ये ग़ुस्सेली सी

दिखाएगी  मुझे अंगूठा  रे

आज तो मेरा दिल  टूटा टूटा रे …

अरी माँ.. कहाँ है मेरा जूता

इस रुतरु दिलटुटरु

का सर मेरे हाथ से फूटा रे.

 

{मेघगर्जन और आकाश-ध्वनि — }

विचित्र हैं ये भारत देश के प्रेमी

एक अठखेली करती सी , झगड़ती सी, ज़िद्दी हठीली सी

एक दीवाना , पगला , बेहोश मदमस्त रंगीला सा

बहुत देखि तुम्हरी  ये छाता-लीला

 

तेरे हाथों की छुअन

से मन यूँ  हुआ मगन

ज़रा सुन मेरे दिल की धड़कधड़क-कन

आज जो नाचत है गावत है

धनन धनन धनन धनन

धनन धनन धनन धनन.

 

सुन रे मेरे भोले-भालु सजन

छीन लिया रे तूने मुझसे मेरा ही मन

अब छोड़ी जो तूने

बिन पूछे पकड़ी हुई मेरी  कलैयां रे

दे दनादन पिटेगा मेरी चपलिया से

चपट चपट चपट

छें छें छीं छीं छें छें छूं छूं

आक छें आक छीं आक छें आक छूं

अबे शुन बे भालू -घोंचू

मेरी रुमलिया से पूछ न अपनी नाक तू

 

चुप कर रे पगली

अपनी चपलिया चोंचु कू

आई भयंकर मुझे

आ आ आ आ आ छींकु

 

सुन रे सखा , ये जीवन कोई खेला नहीं

तुझे दिल दिया है कोई चाय का प्याला नहीं

एक टूटा तो छनाक सी आवाज़ होगी

तो कुछ टुकड़े होंगे , फर्श से निपट जाएगा

दूजा टूटा तो हज़ार टुकड़े होंगे ,

बेआवाज़ अश्रुओं में जीवन सिमट जाएगा

शिकायतों के लिए इन लबों से शब्द न निकलेंगे

कभी रूठ के बिछड़े साथी, फिर कभी न मिलेंगे

 

सुन सजनी, न ये खेला है, न ये प्याला है , ये मेरा प्यार है

मैं दीवाना सही, आवारा तो नहीं , तू मेरी रूह का अंतहीन सार है 

थोड़ा अटपटा हूँ , हरकतों से बन्दर और लंगूर हूँ।

प्याले तो टूटेंगे ,

तेरी अँखियों में एक ऑंसू  न आने दूंगा , प्रण लेता हूँ

अंधेरों में तुझे न सिमटने दूंगा , अपने रक्त मैं  ये से वचन देता हूँ

दिल तेरा कैसे टूटेगा , आज से तुझे अपनी हर धड़कन  देता हूँ

रूठ के बिछड़ गयी , तो मनाने तो मैं  ना आऊंगा

राख बन गया तो ,हवा में ,  तुझसे पहले बिखर जाऊँगा। …..

 

{मेघगर्जन – आकाशध्वनि }

तुम्हरा प्रेम हमको बहुत भाता जी

ये लो पकड़ो अपना छाता जी

कभी न टूटे तुम्हरा नाता जी।

जय राम जी !

हमे मिलना ही है ,

कभी न कभी , कहीं न कहीं

मिले तो , बिछड़ेंगे न इस बार..

ढूँढ़ती हैं तुझे निगाहें

तू कहीं  है आस-पास

अंतहीन , पवित्र

मेरी रूह , मेरा जीवन-श्वास