Mediocre Words..Banal Poetry
Mediocre Words..Banal Poetry

दर्द भरी दास्तान एक घायल चूहे की

दीवानगी में लोग अक्सर अपना होश खो देते हैं, और वास्तवि कता

से उनका नाता टूट जाता है, रह जाता है – तो सि र्फ एक जूनून, एक

नशा जो इंसान या जानवर की पूरी शख्सि यत को अपने शिकंजे

में ले लेता है….

कुछ ऐसा ही मेरे पालतू चूहे के साथ हुआ। जब से “घायल” देखकर आया, सनी देओल का दीवाना हो गया और पूरी तरह से बौरा गया गरीब! ब्रेड और बिस्कुट के छोटे छोटे टुकड़े कुतर कर मेरे जूतों में शूशू करने वाले और फिर मेरे हेलमेट में सपनों के झूले में झूलने वाले नन्हे चूहे ने वो तूफान मचाया की ज़िंदगी एक युद्ध सी बन गयी है। आज भी याद है मुझे वो दिन जब मैं अपनी मोटरसाइकिल पर कहीं जा रहा था और मेरा चूहा हेलमेट में आराम से राइडिंग के मज़े ले रहा था, कि अचानक गुजरती हुई पुलिस जिप्सी का सायरन सुनाई दिया। उसके बाद जो हुआ वो याद करके भी सिहर जाता हूँ, हेलमेट में से अपनी मुंडी निकाल कर चिंघाड़ा, “झक मारती है पुलिस, उतार कर फेंक दो ये वर्दी और पहन लो बलवंत राय का पट्टा अपने गले में। लॉ माय फुट! SHO माय फुट, सारे ठुल्ले माय फुट। भाई साहब वर्दी का तो मालूम नहीं, लेकिन उस दिन उन्होंने अपनी बेल्ट निकालकर मेरी जो सुताई की है न, वो दर्द-ए-बम मैं बयान नहीं कर सकता, कुर्सी पर भी लगाकर नहीं बैठ सकता अब तक मैं।

पुलिस तो पुलिस, इस चूहे के वजह से मैं कई मानहानि के दावों में फंसा हुआ हूँ। गली-मोहल्ले के सारे कुत्तों ने मेरे खिलाफ मुकदमा ठोक रखा है कि जब भी मेरा चूहा किसी कुत्ते को देखता है, उसपर “बलवंत राय के कुत्ते” कहकर हिकारत से थूक देता है। कुत्तों को असली आपत्ति इस बात पर है कि वो अपने मालिकों के कुत्ते हैं या फिर आज़ाद गली के। और जिस बलवंत राय नामक शख्स का जिक्र बार-बार होता है, उस नाम के किसी बंदों को वो जानते तक नहीं और उन्हें बार इस शख्स का कुत्ता बताकर उनके चरित्र पर दाग लगाया जा रहा है। सही बात है।
खैर, मुकदमे छोड़ो, कई बार इस चूहे की हरकतों के कारण जान पर बन आती है। एक दिन हम लोग पार्क में घूमने गए, वहां पर आस-पड़ोस के कुछ हाथी भी घूम रहे थे। अब उन में से एक हाथी का पेट खराब हुआ और बेचारे का गोबर निकल गया और पड़ा मेरे चूहे के सर पे। गोबर की बदबू से ज्यादा खुन्नस चूहे को इस बात की थी कि उस हाथी ने इसे सॉरी नहीं बोला। उस वक्त तो ये बंदा चुप रहा, बस घूर के उसे जाते हुए देखते रहा, लेकिन रात को दो बजे पूरी एक कटोरी दारू चढ़ा के हाथियों में मोहल्ले में बावलों की तरह चीख रहा है, “हाथिया- चीर दूंगा, फाड़ दूंगा, उठा-उठा के पटकूंगा, घर में घुस कर मारूंगा, सब को एक साथ मारूंगा।” हाथी बेचारे शरीफ लोग थे, इसके मुंह नहीं लगना चाहते थे, उन्होंने पुलिस बुला ली। दो-तीन मुस्टंडे से पुलिसवाले, साथ में खतरनाक से रॉटवेलर पुलिस डॉग्स। तब भी इसे चैन नहीं है, कहता है “अब पुलिस बीच में नहीं आएगी, जो गुर्दा रखता है उसे ही जीने का हक है”। मूंगफली जैसा गुर्दा है इसका! घंटा गुर्दा! फिर गर्दन उचका के मुस्टंडे पुलिसवाले को बोलता है, “अगर मर्द बनने का इतना शौक है न, तो इन कुत्तों का सहारा लेना छोड़ दे।” और फिर आव देखा न ताव, उस रॉटवेलर को लात मारकर उसे “बलवंत रॉय के कुत्ते, आक्थू” कहकर उसके पंजे पर थूककर भाग जाता है। देखो यार अब इस उम्र में न मुझसे इतनी मार नहीं खाई जाती। ऐसा नहीं कहते।
एक दिन तो हद ही हो गयी। चिड़ियाघर गए घूमने हम लोग। शेर बेचारा जंगली जानवर, ऊपर से अधिकारिक तौर पे जानवरों का राजा! आदत से मजबूर मेरे चूहे को देखकर उसकी पूंछ पर रख दिया अपना पंजा। बस फिर क्या, बिगड़ गया अपना जट्ट। गल्ले के सामने बैठा हूँ, रोज़ी-रोटी की कसम खा के बोलता हूँ मैंने फूलों की तरह पाला है इसे। अपना नन्हा सा पंजा निकालकर बोलता है, “ये मजदूर का हाथ है शेरया, तेरा पिंजरा पिघला कर तेरे थोबड़े का आकार बदल दूंगा।” मैं मजदूरी कराऊंगा इससे? तो क्यों मुझे ऐसे ज़लील करते हो? खैर, शायद शेर भी सनी देओल का फैन था, वो भी गुर्राया, “साले चीर दूंगा, फाड़ दूंगा, ज़रा भी बदतमीज़ी करी तो पिंजरे से निकल कर मारूंगा। ये zoo-officers देखते रहेंगे और तू पिटता रहेगा!” ये सुनकर चूहा और ताव खा गया, बुरी तरह से दहाड़ा, “डराकर लोगों को वो जीता है, जिसकी हड्डियों में पानी भरा होता है! तेरा case यहीं रफा-दफा कर दूंगा।” ये कहते हुए चिड़िया की बीट शेर की आँख पर फेंक कर मारता है। उसके बाद तो कोहराम मच गया। एक तरफ हम चूहे को रोकें, अन्दर शेर के पिंजरे में उसकी फैमिली उसको। बहुत मुश्किल से स्थिति नियंत्रण में आयी।
एक दिन हमारी गली के चूहों की कांफ्रेंस हुई के बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा। सबके नामों में से चूहादास का नाम चुना गया, लेकिन चूहादास ने पाइल्स का कारण बताकर अपना नाम वापिस ले लिया। इस बात पर पकड़ ली मेरे चूहे ने उसकी गुद्दी, “चूहादास, अगर सब ने पाइल्स का बहाना बनाकर अपने हाथ खेंच लिए तो असी घंटी कैसे बांधेंगे? घंटी कैसे बांधेंगे? बता। इससे पहले तुझे गद्दार करार देकर तुझे गोली मार दूं, दफा हो जा यहाँ से।” चूहदास तो दफा हो गया लेकिन ये भाई साहब ऐलान करते हैं, “आज के बाद बिल्ली की हर सांस के पीछे मैं मौत बनकर खड़ा हूँ, जाकर बोल दो उसे, गोविंद फिर आ रहा है। और जो मैं कह रहा हूँ वो होने वाला है।” वो दिन है और आज का दिन है, बाकी चूहों को आज तक पता नहीं चला कि हु द हेल इज/वाज़ गोविंद?!

खैर कुछ भी कहो, मुझे अपने चूहे पर कभी-कभी बहुत गर्व होता है।

एक दिन जानवरों में दंगा हो गया, कुछ जानवरों ने इसे घेर लिया, लगे पूछने – कौन है तू? चूहा है? छछूंदर है? गिलहरी है?

बस मेरे पट्ठे ने उखाड़ लिया नल का पाइप, घुमाते हुए गरजा, ““ मैं इंडियन हूँ, सिर्फ इंडियन.”